Skip to main content
WCS
Menu
About Us
Important Committees
Board of Directors
Financials
Internal Policy
Programmes
Director
Cross-Functional
Focal
Support
Newsroom
Blog
News
Wildlife Trade News
Opportunities
Admin Consultant
Consultant - Reducing Turtle Consumption
Resources
Publications
Annual Reports
Gallery
BlueMAP-India
Donate
Search WCS.org
Search
search
Popular Search Terms
Wildlife Conservation Society - India
Wildlife Conservation Society - India Menu
About Us
Programmes
Newsroom
Opportunities
Resources
Donate
Newsroom
Blog
Current Articles
|
Archives
|
Search
The Tiger: Importance and challenges in present scenario (Hindi)
Views: 2984
| August 10, 2018
बाघ बचाने की ज़रूरतें और चुनौतियाँ
- रमेश पांडेय
खुले जंगलो में आज की तारीख में सबसे ज्यादा बाघ हमारे देश में है | भारत के अलावा विश्व के अन्य देशों जैसे नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार, वियतनाम, कंबोडिया, लाओस, इंडोनेशिया, थाईलैंड, मलेशिया, चीन, और रूस के जंगलों में भी बाघ पाए जाते है |
हमारे देश में सिर्फ लगभग २२०० बाघ बचे हैं © रमेश पांडेय
सौ वर्ष पहले पूरे विश्व के जंगलों में तकरीबन एक लाख बाघ पाए जाते थे जिसमे अकेले लगभग चालीस हज़ार बाघ भारत में थे | विकास के दौर में आज पूरे विश्व में केवल लगभग ३२०० बाघ बचे है जिसमे अकेले तकरीबन २२०० बाघ भारत में हैं | बाघों की कहीं प्रजातियां है जिसमे रॉयल बंगाल टाइगर, साइबेरियन टाइगर , और साउथ चाइना टाइगर प्रमुख हैं | बाघों की कई प्रजातियां जैसे कास्पियन टाइगर, बाली टाइगर, और जावा टाइगर विलुप्त हो चुकी हैं | कई देश जैसे ईरान, कज़ाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, सिंगापुर जहाँ पहले बाघ पाए जाते थे बहुत पहले विलुप्त हो गए | साथ ही कंबोडिया, इंडोनेशिया, और उत्तरी कोरिया जैसे देशों में जहाँ कुछ वर्षों तक बाघ पाए जाते थे, अब दिखना बंद हो गए है |
आज के दौर में बाघ जैसे करिश्माई जानवर को बचाना क्यों ज़रूरी है, ये समझना हमेशा से ज़रूरी रहा हैं | किसी जंगल में बाघ होने का मतलब पूरे इकोसिस्टम का सही सलामत होना हैं | बाघ का जंगल में होना जंगलर की अच्छी सेहत का हाल बताता है | बाघ का जंगल में होने का मतलब जंगल मैं हिरण का होना है, घास के मैदानों, तालाबों का सही सलामत होना है | यही कारण है की जानकार केहेते है की बाघ बच गए तो समझिये सब बच गए; पेड़, पानी, जंगल, हिरण और हम | इसलिए जब बाघ बचाने की बात होती है इसका मतलब ये कतई नहीं होती की सिर्फ इस करिश्माई जीव को बचाना है, बल्कि इसे बचाने का मतलब, मिटटी, पानी, हवा को बचाना हैं, अन्य सारे जीव जंतुओं को बचाना है, नदियों में पानी को बचाना हैं | लेकिन कई बार लोग इसे फिलॉसॉफी की बात कह कर टाल देते हैं | इसलिए ज़रूरी था की बाघ क्षेत्रों जैसे कोर्बेट टाइगर रिज़र्व, दुधवा टाइगर रिज़र्व, या रणथम्बोर टाइगर रिज़र्व से कितने रूपये के बराबर इकोसिस्टम सर्विसेज मिलती है को क्वान्टीफाई कर बताया जाये | दुसरे शब्दों में इन बाघ क्षत्रों से मिलने वाले हवा, पानी, और कार्बन सोखने के मूल्य को आगणित किया जाये | नेशनल टाइगर कंसर्वेशन अथॉरिटी और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ फारेस्ट मैनेजमेंट, भोपाल द्वारा कुछ बाघ क्षत्रों द्वारा दिए जा रहे इकोसिस्टम सर्विसेज को आगणित करने का कार्य कराने पर यह पाया गया की एक बाघ क्षेत्र प्रति वर्ष औसतन २० से २५ अरब रूपये के बराबर हवा, पानी, कार्बन सोखने, घास, चारा, जीन टूल बचाने जैसे लाभ दिए जाते हैं | इसके आलावा क्षेत्रों का जो भौगोलिक, सांस्कृतिक, सौंदर्यिक और सामजिक महत्त्व है सो अलग |
दुधवा टाइगर रिज़र्व © रमेश पांडेय
बाघ के महत्वपूर्ण होने के बावजूद भी बाघों को बचाना एक चुनौती भरा कार्य रहा है | सबसे बड़ी चुनौती रही है जंगल के किनारे बढ़ती हुई जनसंख्या से जंगलों पे पड़ने वाले सीधे दबाव को कम करना है, जिसमे मानव-बाघ संगर्ष भी शामिल है | जंगल के किनारे या भीतर रहने वाले गाँव को सड़क, नहर, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए भी कई बार वन क्षेत्र विखंडित हो जाते है, जो लम्बे समय तक बाघ की सलामती के लिए आवश्यक ज़रूरी 'इन्वॉयलेट एरिया' को छोटा कर देते हैं | कई बार बाघों का शिकार कारने वाले संगठित गिरोह भी बाघों के काल बन जाते हैं | अच्छा ये है की बाघों के बचाने के हर स्तर प्रयास किये जा रहे है, जिसमे वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन में काम कर रहे एनजीओ और आईजीओ के प्रयास सम्मिलित | बाघ क्षेत्रों में सुरक्षा की दृष्टि से स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फाॅर्स का गठन एक महत्वपूर्ण कदम माना जाता हैं | बाघ क्षेत्रों में स्मार्ट पेट्रोलिंग की शुरुआत भी अछि है, एम-स्ट्राइप्स मोबाइल एप्प और सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल से जंगल गश्त को एक नया आयाम मिल रहा हैं | बाघ को बचाने की इस मोहम में जन सहभागिता लेने और बाघ क्षेत्रों में रहेने वाले ग्रामीणों के अधिकार सुनिश्चित रखते हुए उन्हें पुनर्वासित करने के प्रयास भी किये जा रहे है जिसमे कई बाघ क्षेत्रों को उल्लेखनीय सफलता लिली है | बाघ क्षेत्रों में आईटी और अन्य तकनीक जिसमे इलेक्ट्रॉनिक-आई, टेलीमेट्री, ड्रोन, थर्मल इमेजिंग व रिमोट सेंसिंग प्रमुख हैं | इन उपकरण के उपयोग ने भी संरक्षण को आसान बनाने में मदद की है | बाघों की गणना भी अब कैमरा ट्रैप विधि से की जाने लगी है जिसमे बाघ की संख्या को लेकर संशय खत्म हो गया है |
लेकिन बाघ संरक्षण के जिस क्षेत्र में अभी और बेहतरी की गुंजाईश लगती है वो है फील्ड स्टाफ की कमीं को पूरा करना और उन्हें बेहतर सुविधा मुहैया करना | अभ भी बाघ क्षेत्रों के फील्ड स्टाफ अत्यंत कठिन परिस्तिथियों में परिवार से दूर रह कर अल्प सुविधाओं में काम करते है | कई बार उनकी अपराधियों से मुठभेड़ भी हो जाती है जिसमे वे घायल हो जाते है और कई बार जान पर बन आती हैं | फील्ड स्टाफ की सुविधाओं और कौशल वृद्धि पर और सार्थक प्रयास की ज़रुरत हैं | उनकी फिटनेस और वन्यजीव विषयक ज्ञान बढ़ाने, उन्हें विश्व स्तरीय प्रोफेशनल बनाने और उनके इमोशनल लर्निंग पर ध्यान देने से उनकी कार्य क्षमता बढ़ेगी जो देश में बाघ संरक्षण को और बल प्रदान करेगी | ज़रुरत ये भी है की सेना और पुलिस के जवानों की तरह उनके भी कामों को प्रदेश स्तरीय और देश स्तरीय इनामों से नवाज़ा जाए ताकि उनकी हौसला अफ़ज़ाई होती रहे |
फील्ड डायरेक्टर रमेश पांडेय शिविर हाथियों के साथ © फज़लुर रहमान
(लेखक भारतीय वन सेना के अधिकारी है तथा ये उनके व्यक्तिगत विचार है; यह लेख अमर उजाला में प्रकाशित हो चूका है)
Field Director of Dudhwa Tiger Reserve, Ramesh Pandey, gives an idea of why we need to save the tiger and some of the challenges in doing the same. Tigers indicate a healthy ecosystem with lot of herbivores, vegetation and water, he says while quantifying the water, oxygen and carbon sink services. In highlighting the challenges to the tiger, he notes how increasing human population and its demands have come at the cost of the forest. However, with improved protection of forests and an ongoing relocation programme, things are improving he adds. The main problem that remains to be tackled is that of forest field staff shortage as also equipping them. Like the police or defence forces that get recognised for their work, there is need to encourage forest staff too, he notes.
Photo credits: Rujan Sarkar (Cover)